तुम्हे पता है? मै तुम्हारे आँखो को झील जुल्फ़ो को बादल कह तो सकता हूँ मगर यह सब आसान है बिल्कुल धूप बरसने जैसा, मै खोजता हू शरद वर्षपर्यन्त ओस के बरसने का, तुम सुंदर हो बिल्कुल सुन्दर जैसा ना कभी मनुष्य ने रचा कुछ ना प्रकृति ने