ज़िंदगी तू मुकम्मल नहीं, फिर भी तुझसे ना कोई गिला है, तेरी छत्रछाया में नाम शोहरत,तन पर वस्त्र,सर पे छत मिला है। यूँ तो लोगों की अपेक्षाएँ अनंत है, जो कभी भी पूरी नहीं होती, मुकम्मल है ज़िंदगी, गर साँसों का हृदय में अटूट सिलसिला है। 🌝प्रतियोगिता-87🌝 ✨✨आज की रचना के लिए हमारा शब्द है ⤵️ 🌹"ज़िंदगी तू मुकम्मल नहीं"🌹 🌟 विषय के शब्द रचना में होना अनिवार्य नहीं है I कृप्या केवल मर्यादित शब्दों का प्रयोग कर अपनी रचना को उत्कृष्ट बनाएं I