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सबकुछ सुलझाने की चाह मे,अब खुद उलझ गई हूं मै बस उम

सबकुछ सुलझाने की चाह मे,अब खुद उलझ गई हूं मै
बस उम्मीदों के चलते इस सफर में यहां तक आ गई हूं मै!!

अब ना किसी से बात करने का दिल होता है,ना किसी कि बात सुनने का मन होता है!
वर्षो से सब सहजने में खुद ही बिखर गई हूं मै!!

जिन रिश्तों को खुद मैंने चुना था,प्यार के धागो से खुद बुना था
अब सब उलझ गए है वो, इन रिश्तों को सुलझाने में अब खुद ही उलझ गई हूं मै!!

थक चुकी हूं,मै ज़िन्दगी से अब लड़ते लड़ते, बस अब सबसे दूर बहुत दूर जाना चाहती हूं मै,
अब तक तो रोई हूं बहुत,अब सबको रुलाना चाहती हूं मै!!

कभी ना लौटकर आ सकूं उस दुनियां मे जाना चाहती हूं मै
तस्वीर में हंसती मुस्कुराती एक याद बन रह जाना चाहती हूं मै !!

      लेखिका: समृद्धि राघव शेखावत (बबीता शेखावत)

©Singer Samrddhi Raghav Shekhawat(Babita Shekhawat)
  ##मेरी कहानी,मेरी जुबानी

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