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ki कुछ इधर कुछ उधर, प्यार का इंतेजार हो रहा है हमा

ki
कुछ इधर कुछ उधर, प्यार का इंतेजार हो रहा है
हमारा ईश्क हाथों से जा रहा है
और में भी आता हू,online उसकी मौजूदगी पाने को
वो समझता ही नही,किसी के उदास हो जाने
को
इस दिल्लगी को हमे भी आजमाना था
मेने कुछ कहा था,उसे ये समझाना था
देख कही फिर, न ईश्क को मुताशीर हो जाऊ मैं
भीड़ बहुत है,तन्हाई की ,देख कही फिर तन्हा न
हो जाऊ मैं
by........ शायर गुमनाम(2.0)

©Ajay kumar jabdoliya
  बे बसी

बे बसी #शायरी

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