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फूल, कली, तितलियाँ बदल गए श्रृंगार से, मन हरा-भरा

फूल, कली, तितलियाँ बदल गए श्रृंगार से,
मन हरा-भरा हुआ सावन की इक फुहार से,

घुल गई हवाओं में ख़ुश्बू धरा के ज़िस्म की,
तो शांत हो  गए अगन  उमस  भरे ग़ुबार से, 

नशे में मस्त तितलियाँ फूलों के गिर्द घूमती,
काली घटा ने ला दिए दिवस यहाँ ख़ुमार से,

लगी झड़ी है भोर से दिवस अभी खुला नहीं,
कि हर नयन से झाँकता है बाँकपन दयार से,

पखेरूओं के पंख धुल गए मगन हैं शाख पर, 
खिले खिले धुले हैं तन को बादलों ने प्यार से,

कृषक मगन हैं बो रहे खुशी के बीज देखिए, 
हरित  हुए  हैं  धान से जो खेत थे उजाड़ से, 

बादल गरज रहे सघन चमक रही है बिजलियाँ, 
उफन  रही  नदी  नहर  डरा  रही  दहार  से, 

'गुंजन' हृदय विकल सकल जहान की करे दुआ, 
भरे  सभी  के  ज़ख्म  आज  मेघ  की  बहार  से,
  ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
      चेन्नई तमिलनाडु

©Shashi Bhushan Mishra #सावन की इक फुहार#
फूल, कली, तितलियाँ बदल गए श्रृंगार से,
मन हरा-भरा हुआ सावन की इक फुहार से,

घुल गई हवाओं में ख़ुश्बू धरा के ज़िस्म की,
तो शांत हो  गए अगन  उमस  भरे ग़ुबार से, 

नशे में मस्त तितलियाँ फूलों के गिर्द घूमती,
काली घटा ने ला दिए दिवस यहाँ ख़ुमार से,

लगी झड़ी है भोर से दिवस अभी खुला नहीं,
कि हर नयन से झाँकता है बाँकपन दयार से,

पखेरूओं के पंख धुल गए मगन हैं शाख पर, 
खिले खिले धुले हैं तन को बादलों ने प्यार से,

कृषक मगन हैं बो रहे खुशी के बीज देखिए, 
हरित  हुए  हैं  धान से जो खेत थे उजाड़ से, 

बादल गरज रहे सघन चमक रही है बिजलियाँ, 
उफन  रही  नदी  नहर  डरा  रही  दहार  से, 

'गुंजन' हृदय विकल सकल जहान की करे दुआ, 
भरे  सभी  के  ज़ख्म  आज  मेघ  की  बहार  से,
  ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
      चेन्नई तमिलनाडु

©Shashi Bhushan Mishra #सावन की इक फुहार#

#सावन की इक फुहार# #कविता