क्या कभी देखी है तुमने मेरी ग्लानिग्रस्त पुतली नयन की क्या कभी मिली है झलक तुम्हे मेरे अश्रुमिषित मुस्कानो की क्या कभी देखी है तुमने. इन आँखों में छायी विकलता मेरे ह्रदय की काश कोई आकर समझ पाता.मेरे तर्क वितर्क के आवृतो को और दे जाता मुझे सौगात आश्वासनो की ©Parasram Arora आश्वासन