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कुछ पल ही सही, पर एकांत चाहता हूँ, मन में उठते द्व

कुछ पल ही सही, पर एकांत चाहता हूँ,
मन में उठते द्वंद्व को देखना शांत चाहता हूँ!
अपनों से घिरा अपनों में जिया,
कुछ पल मैं, खुद से संवाद चाहता हूँ,
यूं तो कई है अपने भी, पराए भी,
अंधेरों में बैठा मन शांत चाहता हूँ!
न्यायिक दायित्वों के भार से दबा मैं,
खुद के लिए क्षणिक न्याय चाहता हूँ!
कई छल है, कपट है, चतुराई है, जिवन मे,
इन सब से परे मैं आत्म संज्ञान चाहता हूँ!
लोभ, मोह के इस जंगल से दुर,
मैं उन्मुक्त आसमान चाहता हूँ!

मैं एकांत चाहता हूँ! एकांत चाहता हूँ...!!!

©Raj Alok Anand
  #एकांत