White किस को हराऊँ, किस से जीतूं उलझन सी ये मेरे मन में है, पूछूं भी तो किस से भला मेरा द्वंद्व ही अंतर्मन से है। ये धरती ये अम्बर सब चुप है और तारे भी कहीं खोए गगन में है, कहने को चाँद आया तो है पर चाँदनी कहीं गुमसुम सी इस तम में है।। कुछ हलचल सी फिर सुनी मैंने थी दूर एक पेड़ की शाख, चहचहा रहा था बहुत वहाँ अंडे से निकला था नवजात। जंग लड़ने नहीं वो तो बस प्यारा जीवन जीने ही आया था, हमने भी तो कहाँ चुनी थी मन में सुलगी हुई ये आग ।। वीर धीर ना यूँ जीवन खोते वे वही काटते जो वो बोते, मेरे अंदर से निकली आवाज क्यों ऐसे बीज़ बोता तू आज। ये अल्प है जीवन ऊपर से समय भी कम, कि ना कर तू एक पल भी बर्बाद कहे सागर सा बहता मन आज।। ©Sagar Parasher #Thinking #emotions #sagarparasher #sagarkivaani