मैं रहती हूं आज कल ,कुछ उलझी उलझी सी , अपने में खोई कुछ गुमसुम चुप चुप सी , पानी पे तैरती परछाई सी , कभी यहां कभी वहां , मै बावरी सी फिरती हूं, समेटे मुट्ठी में, तेरी कहीं बातों की निशानियां ।। कभी जो मिलने आए तो , मै मिल जाऊंगी चांद तले , तेरे ख्यालों में लिपटी हुई या बादलों के पर्दों से झांक कर, चुपके से देखती हुई तेरी नादानियां ।। मुझे पाओगे तुम अनायास, छलकती हंसी के झरनों में , तेरी अठखेलियों पे खिलखिलाती हुई, मै मिलूंगी गुम तेरी यादों के दामन में ।। मुझे ढूंढ़ना ना तुम ,हकीकत की जमीन पे , मैं वो कहानी हूं जो तुम सुनते हो ख्वाबों में , या बुना करते हो रेशा रेशा ख्वाहिशों से ।। बंद पलकों के पीछे मेरा बसेरा है जहां, मै ठहरी इंतेज़ार कर रही हूं तुम्हारा , सोचती हुई की तुम आओगे एक दिन, तुम आओगे ना ? ~सुगंध Full poetry in caption मैं रहती हूं आज कल ,कुछ उलझी उलझी सी , अपने में खोई कुछ गुमसुम चुप चुप सी पानी पे तैरती परछाई सी , कभी यहां कभी वहां , मै बावरी सी फिरती हूं, समेटे मुट्ठी में, तेरी कहीं बातों की निशानियां ।