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हां पगडंडियों अब नहीं रही, गुजरे कुछ चंद लम्हे सदि

हां पगडंडियों अब नहीं रही,
गुजरे कुछ चंद लम्हे सदियों की रीत के,
उम्र क्या बदली अल्फाज बदल गये प्रीत के,
हां साथ हो लीए वो नये हालात के,
अब होती है बात गैरों से हर कदम,
अब तो अपने रह जाते कई रात बिन बात के,
सुने थे जिन्होंने हर बात हर उम्र की,
अब उमर ढल जाती रह जाती बात अनकही,
दहलीजे  पुकारती है अब खामोश आंखों की,
एक दिन झड़ जाते थे पत्ते उन शाखो की,
हां पगडंडियों अब नहीं रही।

©shalmali shreyanker
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