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काला बादल...✍️ By Dharmendra Gopatwar काला बादल क

काला बादल...✍️
By Dharmendra Gopatwar

काला बादल कली का मनुज पर है छाया 
झूट इंसान के रग रग में है समाया  
भीतर धरती के आग की आंधी 
धरती तप रही पाप की ज्वालाओं से
चारों तरफ़ झूट की हवाएं चल रहीं...... l

     झूठ की आंधी से धरती कांप रही
     सच और झूट की हवाओं से धरती बट रही
     पाप  विशाल समंदर में फ़ैल रहा 
     सच केवल नदियों तक सीमित रहा .......l
     
 
  कल्पनाएं छोड़ कवि को वास्तव से डर
 अर्धसत्य को सच समझ रहा इंसान 
 सच का सूरज काले बादल के पार....
 फिर भी किरने छोड़ रहा 
    काले बादल को छेद रहा ...
सूरज की किरने बादल में समा कर होंगे
सफेद ........l
      
     सफेद बादल से धरती पर फिर से बारिश बरसेगी 
       सत्य के ताक़त से ज्वालाएं जमकर बर्फ़ बन जाएंगे 
        है विश्वास ....... l
   सच जम जायेगा हर मनुज में समाएगा
    सच में है ताक़त हिमालय की श्रृंखला बनाएंगी 
        बर्फ को पिघला कर सच्चाई नदियों में बहेगी
       बारिश में भीग मनुज के पाप धुल जाएंगे .......l

सफेद बादल के बारिश से हर तरफ हरियाली छाएगी
कली के बादल छोड़ सतयुग फिर से आएगा 
 नदियों में स्नान कर इंसान नेकदिल बन जायेंगे
बादल से बारिश 
बारिश से नदियों में
नदियों से समंदर में केवल सत्य बहेगा ......l

       काले बादल के अंत से झूठ घुटनें टेकेगा
       सफेद बादल के आगमण से सच की होगी शुरुवात 
बारिश के थमने पर  नव अंकुर उग आएगा
हर तरफ हरियाली देख  सूरज फिर से मुस्कराएगा ....... l

इंद्रधनुष के आकाशवाणी से
धरती पर सतयुग फिर से आएगा .........l



📖 Author :: ध . वि . गोपतवार

©Dharmendra Gopatwar #कालाबादल
काला बादल...✍️
By Dharmendra Gopatwar

काला बादल कली का मनुज पर है छाया 
झूट इंसान के रग रग में है समाया  
भीतर धरती के आग की आंधी 
धरती तप रही पाप की ज्वालाओं से
चारों तरफ़ झूट की हवाएं चल रहीं...... l

     झूठ की आंधी से धरती कांप रही
     सच और झूट की हवाओं से धरती बट रही
     पाप  विशाल समंदर में फ़ैल रहा 
     सच केवल नदियों तक सीमित रहा .......l
     
 
  कल्पनाएं छोड़ कवि को वास्तव से डर
 अर्धसत्य को सच समझ रहा इंसान 
 सच का सूरज काले बादल के पार....
 फिर भी किरने छोड़ रहा 
    काले बादल को छेद रहा ...
सूरज की किरने बादल में समा कर होंगे
सफेद ........l
      
     सफेद बादल से धरती पर फिर से बारिश बरसेगी 
       सत्य के ताक़त से ज्वालाएं जमकर बर्फ़ बन जाएंगे 
        है विश्वास ....... l
   सच जम जायेगा हर मनुज में समाएगा
    सच में है ताक़त हिमालय की श्रृंखला बनाएंगी 
        बर्फ को पिघला कर सच्चाई नदियों में बहेगी
       बारिश में भीग मनुज के पाप धुल जाएंगे .......l

सफेद बादल के बारिश से हर तरफ हरियाली छाएगी
कली के बादल छोड़ सतयुग फिर से आएगा 
 नदियों में स्नान कर इंसान नेकदिल बन जायेंगे
बादल से बारिश 
बारिश से नदियों में
नदियों से समंदर में केवल सत्य बहेगा ......l

       काले बादल के अंत से झूठ घुटनें टेकेगा
       सफेद बादल के आगमण से सच की होगी शुरुवात 
बारिश के थमने पर  नव अंकुर उग आएगा
हर तरफ हरियाली देख  सूरज फिर से मुस्कराएगा ....... l

इंद्रधनुष के आकाशवाणी से
धरती पर सतयुग फिर से आएगा .........l



📖 Author :: ध . वि . गोपतवार

©Dharmendra Gopatwar #कालाबादल