!! बिन देखे !! बिन देखे ऐसी लगन लगी दर्शन होगा तो क्या होगा? सुनता हूँ रूप गर्विता है धरती पर पाँव नही पड़ते। सुनता हूँ उनके अधर सुघर फूलों को हँसी सिखाते हैं। सुनता हूँ उनके वाणी के सुर पाने को सरगम के भी जी ललचाते हैं। दृग नीली सागर पीली सी गहराई उनके अखियों में। उनके बड़री-बड़री अखियों में अंजन होगा तो क्या होगा? उनके बड़री अखियों के सम्मुख दर्पण होगा तो क्या होगा? मन मे एक दिन कामना जागी दर्शन न करुँ तो अच्छा है। उनके यादों में नित रो रो कर आहें भरूँ तो अच्छा है। बिन देखे ऐसी लगन लगी।