Nojoto: Largest Storytelling Platform

रचना दिनांक,,19,,,03,,02021 वार गुरुवार समय शाम सा

रचना दिनांक,,19,,,03,,02021
वार गुरुवार
समय शाम सात बजे ््
रचनाकार शैलेंद्र आनंद
्््
विषय एक कहानी ्
नारी जीवन की मृगतृष्णाऐ ््
सन्दर्भ ््मुंहबोली मेरी लाडली बिटिया ््
महोदय
रिश्तो की कड़ी भावनाओ की बहती जलधाराओ हर कोई रिश्ता पवित्र होता है।
जिसे देखकर समझना ही नहीं उसे निभाना भी आज के दौर की सबसे बड़ी चुनौती है।
इस दौर में हर रिश्ता किसी भी धरातल पर निस्वार्थ भाव से परेय अपना स्वार्थ अपनी वाह वाह ही के बीच हर कोई रिश्ता आज अपना मौलिक स्वभाव से हटता दिखाई देता है।
क्योंकि रिश्तो की बुनियाद ही खोखली 
जहां संदेह शक सुबाहु आम तौर पर अविश्वास बढते अपराध ने समय के साथ धनबल बाहुबल के समक्ष हर रिश्ते की सांसें उखडती दिखाई देती है।
इन्सान को जीने की कला अपने परिवार अपने खानदान से मिलती है।
वो बच्चे अपने पूरखो बूजूर्गो
के सिखाये मूल्यों अपने जीवन में उतारने का अभ्यास ही संस्कार कहलाता है।
संस्कार ही मनुष्य का गहना होता है।
जो माता पिता के सिरो का ताज होता है।
वो माता पिता अपने बच्चों
में जो जीवन देखते है। वो बच्चे जिन्हें हम नाम देते है।
वो ही बच्चे हमे अपनी पहचान देते है।जो देखते है,,्
वो ये रिश्ता क्या कहलाता है। जहां हर रिश्तो में उतार चढाव आता है।
लेकिन रिश्तो की अहमियत नैतिक मूल्यों को लेकर एक नारी का जीवन उन धागो सा जुडा होना जो एक जूलाहा के भांति एक बूनकर पिता उन धागो से मिलकर सफेद कपड़ों को आकार देने में बुनकर जूलाहा जिस तन्मयता से उन धागो में जीवन देखता है।
वहीं एक माता पिता एक लाडली बिटिया की बाल्यावस्था से लेकर जीवन पर्यन्त अनेक रूपों में अपनी महत्ती भूमिका का निर्वहन करता है।

जो भाग्य और कर्म के बीच सुख और दुख की लकीरें के संघर्ष की बुनियाद में गृहस्ती को फूलों की बगिया बनाती है।
एक पिता अपने जीवन की हर खुशियां देने का उत्सूक रहता है।
जो हालात और मजबूरियों के बीच मधयम वर्गीय कर्मचारियों का परिवार जिन हालात में गुजरता है वह पिता अपने बाल बच्चों की छोटी से छोटी कमियों को धुप छांव के भांति लो संकट के बादलों में मेघ की बरसात की प्रतिक्षा में उससे उभरने के प्रयास में लगा रहता है।
ऐं
वो लाडली बिटिया बडे नाजो से पली बढ़ी और हसीन ख्वाबों में जीवन के अरमान लेकर बाबूल के घर से निकली। अपने जीवन साथी के परिवार में बदलते परिवेश से अपने को ढालना अपने मे बदलाव करते हुए।
हालात से समझौता करना माता पिता कूल परिवार के सम्मान में पिता के मूल्यों की रक्षा करना और सुख और दुख को भूलकर जीवन के सागर मे निकल पडी।
इन पंक्तियों ने भाग्य से जीवन में क्या मेल खाया है।,,मेरा जीवन कोरा कागज़ कोरा ही रह गया,
जो लिखा था वो आंसुओं में बह गया।,,
एक पिता की आंखों की रौशनी जो बेटी के दिलों में राज करती है।
जो सुख दुख की अग्नि परीक्षा में मां बाप की कहानी बन जाती है।
वो बेटी जिसे सुख की घनघोर घटा से पहले ही एक अंधड आंथी ने तमाम खुशियां उजाड कर खामोशी की दुनिया में रुकसत हो जाती है

वो लाडली अपनी जीवन यात्रा में आगे बढती उलझनों में आशा की किरणों की तलाश में भटकती है।
जहां उसे संघर्ष और हालात से समझौता करना नियती बन जाता है।
उस उतार चढ़ाव में हालात के अनुसार आगे के जीवन को संवारना हालात से लडना संकट की घड़ी में आत्म विवेक का प्रयोग करना।
ताकि अंधे कुएं में छलांग लगाना और और जीवन को नरक बनाना है आज की बुनियाद पर कल को रेगिस्तान बनाने पर आमादा मेरा अपना जो मेरी अपनी आत्मकथाएं जिसे पढ़कर समझकर जो जब ख्याल आता है।
जिसे जिसे मैंने अपना सपना अपनी आंखों से देखने का जूनून दिलों दिमाग में लाया हूं।
एक बेटी अपने पिता के ख्वाबो में आकर उनके कानों में वो कहानियां सुनाती है।
जिसे सुनकर वो बडी होकर उस मुकाम पर पहूची है।
जहां नसीब ने ने दो राहे पर खडा कर दिया है।
क्या कहे उपर वाले ने ऐसे इम्तहान में लाकर खड़ा कर दिया है।
जहां खूले आसमान की छत पर नया बसेरा करना है।
अपनी बेटी अपनो की खुशियों में जीवन देखकर नया सबेरा लाना है। आत्म बल और स्वयं की प्रेरणा से सफल जीवन बनाना है।
करो संकल्प हर हाल में लडकर।,,हम होंगे कामयाब एक दिन मन में है विश्वास पूरा है विश्वास एक दिन हम होंगे कामयाब एक दिन। मजबूत इरादों के साथ हौसला बूलन्दीकके साथ जो कार्य निष्ठा के सजग प्रहरी वो लाडली अपनी जीवन यात्रा में आगे बढती उलझनों में आशा की किरणों की तलाश में भटकती है। जहां उसे संघर्ष और हालात से समझोता करना नियती बन जाता है।

कवि शैलेंद्र आनंद


6 जून 2023

©Shailendra Anand
  #Leave