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छूना चाहा था जब जब, आसमान मोहब्बत का, चाहत मेरी

 छूना चाहा था जब जब, आसमान मोहब्बत का,
चाहत मेरी  फ़क़त एक ख्वाब  बनकर रह   गई,

पहुँच  पाए न  कभी हम , इश्क़ की  सरहद तक,
मेरी बेजान   मोहब्बत,  अश्क़  बनकर  बह गई,
 
पार कर  पाते कैसे  हम, वो  दीवार मोहब्बत की,
जो रखी थी दिल की  नींव पर, वो मीनार ढह गई,

कहाँ ले आई मुझे खींचकर, मेरे इश्क़ की हद देखो,
ज़माने की झूठी रस्में ,मेरे कानों में आकर कह गई,

कहानी हीर राँझे  की तो ,  हर  युग  मे ज़िंदा रहेगी,
जहाँ के ज़ुल्म-ओ-सितम सारे जो मुस्कुरा के सह गई,

मोहब्बत पलती है दिलों में, तभी तो  संसार ज़िंदा है,
इश्क़ कब तक रहेगा सरहदों में,मेरे इश्क़ की ज़िद कह गई।।

-पूनम आत्रेय

©poonam atrey
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