मैं रोता नहीं हूं लेकिन दर्द मुझे भी होता है सह जाता हूं किस्से और उन बातों का मतलब कड़वा घूंट समझकर बस पी जाता हूं किसी कोने में बैठ बस सोचता जाता हूं और यूंही चेहरे पे एक बेदर्द सी मुस्कान लिये खुद को कोसता जाता हूं मैं मूर्ख समझता हूं खुद को जो दो पल की मुलाकात को मोहब्बत का नाम देने लगता हूं मैं अंजान चेहरों को भी न जाने क्यूं अपना मानने लगता हूं यूं मैं कभी रोता नहीं हूं मगर कभी कभी यूंही रोने लगता हूं अनगिनत बातों के बीच जीता हूं सब कुछ सहता हूं मगर फिर भी मगर फिर भी चुप मैं रह जाता हूं कोरे कागज पे आज कुछ लिखता हूं जैसे आखिरी खत में आंसुओं के मोतियों को मैं पिरोता हूं शब्द शब्द जोड़ कर दुनिया मैं अपनी संजोता हूं हां कभी कभी रोता हूं मगर यादों के सपने भी संजोता हूं टूट कर बिखर जाता हूं लेकिन फिर संभल जाता हूं यूं मैं रोता नहीं हूं मगर न जाने क्यूं यूंही कभी रो जाता हूं। ©Gaurav Soni #ShabdonKiDuniya