गुनाह होते हुए जिसने भी चुप्पी साधी है वह इंसान नहीं वह एक समाधी है फर्क क्या है उसने लूटा तूने लूटने दिया वह प्रत्यक्ष तू अप्रत्यक्ष अपराधी है तेरा मुँह फेरना भी तेरी सहमति थी उसकी पूरी गलती है तो तेरी आधी है जो चुप न रहे विरोध करें अन्याय पर वही धार्मिक है वही अवराधी है सन्तोष पांडेय(सत्यबन्धु) Suman Zaniyan