किस गूज की बात करूं मै, किस चीख को याद करूं मै। छीन बिन किया जो तू सबने, जिस्म को तोड़ दिया जो तू सबने । मेरा हृदय और हर एक कोना तन का मेरी चीख पुकारती रही , बिटिया थी मै , खुशियां थी मै, घर की रौनक दिया बन जलती थी मै, कितने अंगारे सहे थे मैंने। कितने सपने देखे थे जीने के , कितने गरीबी से पली थी मै , समाज की एक कड़ी थी मै। फिर क्यों हुआ मेरे साथ ऐसा, जो मरने के बाद भी ना थमा मेरी दर्द की दास्ता । मेरी बेबसी की गवाह दे रही शरीर को भी इंसाफ का उजाला मिल ना सका । पिता -भाई लड़ता रहा, मां मेरी तरसती रही। मेरी सखिया इंतज़ार में नम आंखे भिगोये थी , मेरा घर मेरी अंतिम विदाई के लिए बाहें खोले बैठा था मगर क्या जल्दी थी प्रशासन को जो अत्याचार मेरे मृत्य शरीर से मेरी मृत्य शरीर को लेकर परिवार से बद सलुकी करता रहा । कौन कहता है मेरी चीत्कार में सिर्फ मनचलों का हाथ था , मेरी रूह को मारने में रक्षक रूपी भक्षक का भी साथ था रचनाकार -अनिमेष मण्डल #RIPFORMANISHA #Stoprape