हिज्र(जुदायी) में मेरी वो रोया बहुत था, मैने भी आँसुओ से खुद को भिगोया बहुत था.. फिर ये क्या हुआ और वक्त गुजर गया, हर वो शय(चीज) खो गयी जिसे संजोया बहुत था.. झूठे ही निकले उसके वादे सारे, वो शख्स जो अपने वादो पर इतराया बहुत था.. इक रंज था कि उसने फिर कभी मुड़कर नही देखा, इक मैं था जिसने उस संग(पत्थर) को आवाज लगाया बहुत था.. गुजार दी जिंदगी अपनी फकीरी में 'अभिषेक', वो था तो अपने पास सरमाया(धन) बहुत था✒✒ #hizr