प्रेम में तो सखी हर्ष है विषाद है पढ़ा सके पहले से क्या कोई किताब है विवाह में उत्तरदायित्व है अधिकार है समझ में आ जाए तो विवाह भी खिताब है बीतते हैं साल दर साल हथकड़ियों के साथ हाथ छुड़ाने वाले टिक पाएंगे कहीं यही तो सवाल है दोष देखने वालों का गुणों को नजरंदाज करना ही मलाल है अपनी कमियों को नहीं देखने का चलन ही करता बवाल है बबली भाटी बैसला ©Babli BhatiBaisla चलन KK क्षत्राणी