हैं समक्ष जो आज एकदिन सपनों में बस जायेंगे, प्रीत की पुरवाई में सावन भादो बनकर आयेंगे, यौवन की मिट्टी से सींचा था जिसने नवजीवन को, वही बुढ़ापे में ख़ुद को बेबस लाचार बतायेंगे, वक़्त वक़्त की बात देखिए चलती नौका पानी में, भरने लगे नाव में पानी डूब के सब मर जायेंगे, सुंदर सर्वश्रेष्ठ रचना है मानव तन इस दुनिया में, सफल नहीं कर पाए फिर सिर धुन-धुनकर पछतायेंगे, ज्ञान दीप जलने दो होगा मन से ख़त्म अंधेरा, भ्रम, भय, संशय दूर हटेंगे परमानन्द समायेंगे, जल,थल,गगन,पवन में व्यापक सुंदर रूप निहारो, स्वर्गलोक की छोड़ कामना जगती में रम जायेंगे, ममता, समता,दया हृदय में शांतिदूत बन झलके, रामराज्य का स्वप्न तभी साकार स्वयं कर पायेंगे, रायशुमारी करले 'गुंजन' जीवन सफल बनाले, बीता अवसर हाथ न आए क्या मुँह लेकर जायेंगे, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ०प्र० ©Shashi Bhushan Mishra #सपनें में बस जायेंगे#