पास रहतीं न तुम दीप जलाता न यों प्राण ,रहतीं न तुम प्यार पलता न यों। रीति उनकी रही प्रीत जिसने न की, प्रीत उसकी रही रीति जिनसे न की, स्वप्न उसके हुए नींद जिसकी रही, गीत उसके हुए नीति जिसने न की। काश, मेरे नयन में समाती न तुम, ग़ैर रहतीं अगर प्राण जलता न यों। भाव यों ही रहे स्वप्न बनते गये, दूर मंजिल रही पांव चलते गये, शूल से थीं डगर, प्राण !मेरी भरीं, पांव छिलते रहे , अश्रु ढलते गये। लघु प्रणय की तरी छोड़ जाती न तुम, चक्र खाते भंवर बीच फंसता न यों। हर कली को रहा मुस्कराना सदा, हर कली को प्रणय कर बुलाता सदा, भूल मुझसे हुई, प्यार तुझसे हुआ, ध्येय जिसका रहा उर जलाना सदा। व्यर्थ के गान यह आज़ बनते न यों, सोच तुमको सदा अश्रु ढलता न यों। ******************** ◆Nitin Arya Muntzir◆ प्यार पलता न यों । muntzir poetry #DawnSun Ritika Singh