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मुझे मयख़ाने तो मिलते है पर अब वो पैमानें नहीं मि

 मुझे मयख़ाने तो मिलते है 
पर अब वो पैमानें नहीं मिलते..
मय को पिलाने वाले नज़राने नहीं मिलते.. 
साकी भी परेशां है उन्हें दीवाने नही मिलते, 
आँखों से पिलाने वाले  नज़राने नही मिलते, 
जब वो आते थे रुख़ उनकी तरफ़ मोड़ दिया करते थे, तब मय को हम पैमानें में छोड़ दिया करते थे ।
उनके नशें का शुरुर आज भी है हमे उनपे ग़ुरूर आज भी है,
उनके आने की आहट आज भी है
मेरे पैरो में लड़खड़ाहट आज भी है
" इक सिर्फ़ तुम्हीं मय को आँखों से पिलाते हो..
कहने को तो दुनिया में मयख़ाने हज़ारो है "

©Manjul Sarkar
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