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टूटकर, यूं बहाने को,जिंदगानी नही है। माटी बनाने को

टूटकर, यूं बहाने को,जिंदगानी नही है।
माटी बनाने को,हर्गिज़ यह जवानी नही है।।
मोहब्बत में जीना और मोहब्बत में मरना।
कहानी यह बरसों पुरानी नही है ।।
गिरा टूटकर एक शीशा कहीं पर ।
टुकड़ों में उभरी,एक कहानी नयी है।।
टूटा शीशा देखा तो एक दिल था किसी का।
आँसुओं ने रोकर यह कहानी कही है ।।
अगर डूबकर मर भी जाये कोई ।
कहेगा अब सुबह मेरी भी सुहानी नही है।।

©Shubham Bhardwaj
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