कड़कती धूप में! शीतल छाँव बन रहे हो!! ठिठुरती ठंड में! गर्म अलाव बन रहे हो!! बुनते हैं आशियां! तिनके तिनके से पंछी जैसे!! लगता है सदियों से! तुम बन के शब्द! मेरी गज़ल बुन रहे हो!!! ©Deepak Bisht #सदियां-ए-नाता