अपना घर घर वह है जहाँ बुजुर्गों का इक साया है । जहाँ बस अपनों के प्यार की माया है ।। जहाँ हँसी-ठिठोली, चहल-पहल । जहाँ सबके दिलों में रहता हर इक पल ।। जहाँ मजबूत ईंटों की इक नीव होती है । पर इस नींव में एक भी दरारें नहीं होतीं ।। जहाँ आपस में आगे बढ़ने की होड़ होती है । पर किसी सदस्य में स्वार्थपरता नहीं ।। जहाँ की खिड़कियाँ-दरवाज़े ये सब । हवाओं के झोंकों संग बाते करते हैं ।। जहाँ सभी मधुर रिश्ते जन्म लेते हैं । जहाँ रिश्तों की डोरी सबके हाँथ होती है ।। जहाँ आँगन में हर पल किलकारियाँ । और औरतों की मीठी हँसी गूंजती है ।। राone@उल्फ़त-ए-ज़िन्दग़ी घर अपना