शब का मौसम हुआ खराब,आज मत रोको। तुम हो चढ़ता हुआ शबाब,आज मत रोको।। फिर न संभलेंगे,अग़र एक बार फिसले तो। रात क़ातिल है बे-हिसाब,आज मत रोको।। मैं तेरे बाग़ में आया हुआ एक भौरा हूँ। तू है खिलता हुआ गुलाब,आज मत रोको। अब ज़ुबा खोलते हुए ही लब लरज़ते हैं। तुमसे कहते हैं हम ज़नाब,आज मत रोको।। इस दरमियां मे यक़ीनन हया जरूरी है। न टूट जाये ये हिज़ाब,आज मत रोको।। लब के सागर से ये साक़ी अग़र टकराया तो। कही छलके न ये शराब,आज मत रोको ।। #इक़बाल मेंहदी काज़मी