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iqbalmehdikazmi3501
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Iqbal Mehdi Kazmi

सब कुछ है मेरे पास मग़र कुछ कमी भी है। आँखों में गर-चमक है तो थोड़ी नमी भी है।! लगती नही -लग़ाम मेरी इस- मिजाज़ पर। दिल की लगी कभी तो कभी दिल्लगी भी है।। हैरान- न हो मुझको- समन्दर में देख कर। मेरे -लबों पर तेरे -लिए - तिश्नगी भी है।! दिल तुझको ढूंढता है निगाहें किसी को और। अब क्या करूँ मिजाज़ में आवारगी भी है।। उड़ता हूँ मैं फिज़ाओ में अब तो यहाँ-वहाँ। रूकने को मेरे वास्ते दो -गज़-ज़मी भी है।।

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Iqbal Mehdi Kazmi

#shayrana#shayri
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Iqbal Mehdi Kazmi

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Iqbal Mehdi Kazmi

बागों की तमन्ना है न महफ़िल की आरज़ू ।
बस साथ तुम्हारा हो ये है दिल की आरज़ू ।।
दिन-रात ख्वाहिशो को बस तेरी तलाश है।
राही को जैसे होती है मंज़िल की आरज़ू ।।
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Iqbal Mehdi Kazmi

मेरी तमाम -उम्र का - हासिल है दोस्ती ।
तूफ़ान है ग़र ज़िन्दगी-साहिल है दोस्ती ।।
इस दोस्ती की आज मैं किससे मिसाल दूं ।
रिश्तों से बहुत आगें की मंजिल है दोस्ती ।। Deepika Dubey Nidhi Dehru Navneet Sarada Daya Khurana Madhu Kaur

Deepika Dubey Nidhi Dehru Navneet Sarada Daya Khurana Madhu Kaur #शायरी

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Iqbal Mehdi Kazmi

फ़िर आरज़ू मेरी नई मंज़िल पे खड़ी है ।
"मेंहदी"की कलम से मुझें उम्मीद बड़ी है।
मुझकों सँवारने को जो ज़िद पर अड़ी है।एहसास हो रहा है कि दुल्हन हूँ नवेली ।
उर्दू है मेरा नाम मैं ख़ुसरो की पहेली।। #आरज़ू#मेंहदी #इक़बाल
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Iqbal Mehdi Kazmi

 Rajmangal Publishers on Google: https://posts.gle/GQqFa

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Iqbal Mehdi Kazmi

#DearZindagi 

बदन की खुश्बू मेरे यार की वो लाई है।
लबो को छू कर हवा मेरे पास आई है।।

मिला ये आज पैग़ाम ऐ यार है मुझकों ।
वो कहती है बहुत तुमसे प्यार है मुझकों ।।
तेरे बिना  न,ज़रा भी क़रार है मुझकों ।
ये अपनी दास्तां ख़ुद उसने ही सुनाई है ।
लबों को छू कर हवा मेरे पास आई है।।




तेरे बिना तो मेरे दिन नही गुज़रते है ।
ये गेसु अब न सजते है न सवारते है ।।
तेरी याद में तिल-तिल हम यूँ ही मरते है ।।
तेरे बिना नही जीने की कसम खाई है।।
लबों को छू कर हवा मेरे पास आई है।।

हवा के साथ ग़र मैं भी उड़ के आ जाती ।
मेरे महबूब तेरी बाहों में समा जाती ।।
तमाम उम्र कभी लौट कर फ़िर ना जाती 
मग़र लिखी अभी किस्मत में ही जुदाई है 
लबों को छू कर हवा मेरे पास आई है।।

तेरी यादों के साये मुझकों नज़र आते है।
ये सितारे भी मुझें अब नही लुभाते है ।
मुझें तन्हाई में अंधेरे बहुत डराते है ।
हर-एक रात इस तरह ही बिताई है ।।
लबों को छू कर हवा मेरे पास आई है।।

अब दुनियां से नही कोई सरोकार मुझें।
इस मुहब्बत ने भी कर दिया लाचार मुझें।
बस मरने से है इसलिए इन्कार मुझें ।
तेरी खुशबू मेरी साँसों में जो समाई है ।।
लबों को छू कर हवा मेरे पास आई है।।

पलट कर जाना तो पैग़ाम ये हवा देना ।
उसी के साथ ज़माने को भी बता देना ।
हर एक  को ही ये एहसास भी करा देना ।
तेरी चाहत कभी तेरी नही- पराई है ।
लबों को छू कर हवा मेरे पास आई है ।।

उससे"मेंहदी"ने कहां,यहीं होता है सिला।
जब मुहब्बत है तो जुदाई का, कैसा ग़िला ।।
मजनूं लैला को न शीरी को फरहाद मिला ।
सब की किश्ती इस इश्क़ ने डुबाई  है ।
लबों को छू कर हवा मेरे पास आई है ।। बदन की खुश्बू मेरे यार की वो लाई है।
लबो को छू कर हवा मेरे पास आई है।।

मिला ये आज पैग़ाम ऐ यार है मुझकों ।
वो ये कहती है बहुत तुमसे प्यार है मुझकों ।।
तेरे बिना  न,ज़रा भी क़रार है मुझकों ।
ये अपनी दास्तां ख़ुद उसने ही सुनाई है ।
लबों को छू कर हवा मेरे पास आई है।।

बदन की खुश्बू मेरे यार की वो लाई है। लबो को छू कर हवा मेरे पास आई है।। मिला ये आज पैग़ाम ऐ यार है मुझकों । वो ये कहती है बहुत तुमसे प्यार है मुझकों ।। तेरे बिना न,ज़रा भी क़रार है मुझकों । ये अपनी दास्तां ख़ुद उसने ही सुनाई है । लबों को छू कर हवा मेरे पास आई है।। #DearZindagi #शायरी

4 Love

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Iqbal Mehdi Kazmi

सूखी टहनी पर- महक़ता गुलाब आ जाता ।
तुम जो आते तो खिज़ा पे शबाब आ जाता ।।
ख़ुद मुहब्बत की निगाहों पर हया छा जाती ।
मौसम-ऐ-इश्क़ पे बादल का नक़ाब आ जाता ।।
साथ -होता -अग़र -जो- मेरे मुकद्दर -मेरा ।
फ़िर तो शायद मेरे हक़ में जवाब आ जाता ।।
वो तो अच्छा हुआ ठुकरा दिया तूने मुझकों।
वरना दुनिया मे नया इंकलाब आ जाता ।।
हम भी भर लेते वो नूर  अपनी आँखों में।
काश "मेंहदी" तेरा वो माहताब आ जाता ।। #इक़बालमेहदीबालरामपुरी
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Iqbal Mehdi Kazmi

ख़ाली रस्में निभाने से क्या फ़ायदा ।
यूँ ही  नजदीक आने से क्या फ़ायदा ।।
हाल-ऐ-दिल तो सुने पर तवज्जों न दें।
उनको बातें बताने से क्या फ़ायदा ।।
साथ में हो मग़र, दूरियां दिल में हो ।
ऐसी महफ़िल सजाने से क्या फ़ायदा ।
संग उसको क़भी जज्ब करता नही ।
उसको पानी पिलाने से क्या फ़ायदा ।।
जिनका उल्फ़त से न हो दूर तक वास्ता।
उनको गज़ले सुनाने से क्या फ़ायदा।।
"मेंहदी"दिल पर ही जब बोझ बढ़ने लगे।
ऐसे रिश्ते निभाने- से क्या फ़ायदा ।। #ग़ज़ल#iqbalmehdikazmi
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Iqbal Mehdi Kazmi

अब तेरी बारगाह में माँगूं भला मैं क्या ।
देता है तू मुराद से ज़्यादा मेरे "ख़ुदा'।। #ख़ुदा
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