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मर्द क्यों रोते नहीं अपनी आँखे भिगोते नहीं ऐसा नही

मर्द क्यों रोते नहीं अपनी आँखे भिगोते नहीं
ऐसा नहीं........
मर्द को भी दिल होता है मर्द भी छुपकर रोता है......................
जिम्मेदारी का बोझ है इतना सागर में है मोती जितना..............
घर छोड़ा माँ बाप छोड़ा बेमन सबसे हीं मुंह मोड़ा.......................
सबकी खुशी में उसकी ख़ुशी हैं सबकी हँसी मे उसकी हँसी है....
आँख तो उसका भी भरता है पर ना कभी जाहिर करता है............
खुद की जरूरत ध्यान ना आए पर सबकी जरूरत छूट ना जाए .
फिर ना कहना मर्द कयों नहीं रोते जिसपे हो सबकी.....................                खुशी की जिम्मेदारी वो मर्द अपनी पलकें नहीं भिगोते...............
🙏

©S Priyadarshini
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