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उस हारे ने मुश्किल से हौसला बांधा था.... टुकड़े सम

उस हारे ने मुश्किल से हौसला बांधा था....
टुकड़े समेटकर कलेजा साधा था...
चंद लफ़्ज़ों में उल्फत को बांधने चला था वो....
फुसफुसाती सी कुछ आहटों का वजन इश्क़ से ज्यादा था....

आशिक़ का हाल कुछ ऐसा था....
टूटते तारे जैसा था....
मन्नतें मांग तो रहे थे सब आंखे मूंदकर उससे...
जब वो बिखरा तो पूछते हैं ये उजाला कैसा था....

©Manish Choudhary
  #Taara