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ख़ुद ही ख़ुद को समझाते हैं, थक जाते फिर सो जाते

ख़ुद ही ख़ुद को समझाते हैं, 
थक  जाते  फिर सो जाते हैं,

वक़्त कहाँ रुकता है फिर भी,
मिला   उसीके   हो  जाते   हैं, 

कट जाता है जीवन सबका, 
बदक़िस्मत  ही रुक जाते हैं,

नई सुबह  आती है  हर  दिन, 
ख़ुश-क़िस्मत जो जग जाते हैं,

चरैवेति   का   मंत्र   साधकर,
पर्वत   ऊपर   चढ़   जाते  हैं, 

दरिया   कैसे    पार    करेंगे?
साहिल  तक  ना  जा पाते हैं, 

अवसर उनको मिलता 'गुंजन',
जो  धीरज  रख  बढ़  जाते हैं, 
   --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
      चेन्नई तमिलनाडु

©Shashi Bhushan Mishra #जग जाते हैं#
ख़ुद ही ख़ुद को समझाते हैं, 
थक  जाते  फिर सो जाते हैं,

वक़्त कहाँ रुकता है फिर भी,
मिला   उसीके   हो  जाते   हैं, 

कट जाता है जीवन सबका, 
बदक़िस्मत  ही रुक जाते हैं,

नई सुबह  आती है  हर  दिन, 
ख़ुश-क़िस्मत जो जग जाते हैं,

चरैवेति   का   मंत्र   साधकर,
पर्वत   ऊपर   चढ़   जाते  हैं, 

दरिया   कैसे    पार    करेंगे?
साहिल  तक  ना  जा पाते हैं, 

अवसर उनको मिलता 'गुंजन',
जो  धीरज  रख  बढ़  जाते हैं, 
   --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
      चेन्नई तमिलनाडु

©Shashi Bhushan Mishra #जग जाते हैं#