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आग में जले इतने हैं कि हर रोज अब जख्म गहरे ही हो

आग में जले इतने हैं 
कि हर रोज अब जख्म
 गहरे ही होते जा रहे हैं 
ये आग की लपटे कम होने का नाम ही नहीं ले रही 
और तमाशा तो देखो
हमें आग में जलता देख , उस आग
 में हाथ सेकने वालों की 
कतार हर दिन लंबी ही होती जा रही है 
मैं पुछती हूं 
कि पूरे शहर का का पानी 
सूरज में सोख लिया है
या चांद ने अपनी शीतलता को बनाए 
रखने के लिए उधार पे लिया है ? 

मेरी आँखें अब भी रश्तो पर ही टिकी हैं 
मेरे अपने अब तक भी क्यों नहीं आये  
धरती से मांग कर , बादल से छीन कर  
मेरे पास, मेरे पास पानी लेकर !!

©katha(कथा ) #DiyaSalaai  Δ¥ΔŦ  shraddha singh  Priya singh  Gautam  Dr.Meet (मीत)
आग में जले इतने हैं 
कि हर रोज अब जख्म
 गहरे ही होते जा रहे हैं 
ये आग की लपटे कम होने का नाम ही नहीं ले रही 
और तमाशा तो देखो
हमें आग में जलता देख , उस आग
 में हाथ सेकने वालों की 
कतार हर दिन लंबी ही होती जा रही है 
मैं पुछती हूं 
कि पूरे शहर का का पानी 
सूरज में सोख लिया है
या चांद ने अपनी शीतलता को बनाए 
रखने के लिए उधार पे लिया है ? 

मेरी आँखें अब भी रश्तो पर ही टिकी हैं 
मेरे अपने अब तक भी क्यों नहीं आये  
धरती से मांग कर , बादल से छीन कर  
मेरे पास, मेरे पास पानी लेकर !!

©katha(कथा ) #DiyaSalaai  Δ¥ΔŦ  shraddha singh  Priya singh  Gautam  Dr.Meet (मीत)