याद है उस दिन जब मेरे पैर सीढिय़ां चढ़ते चढ़ते थक गये थे मानो जेसे रुक से गये हो और ना मन था । मेरा चलने का शायद तुम जल्दी मै थे तुम रुक गये मेरे साथ मेरे एक बार कहने पर थोड़ा नही काफी वक़्त बिताया हमनें साथ उस वक़्त लगा की हां कोई बिना मतलब के निभा सकता है साथ हां मै सही हूँ तुम वही हो जिसका साथ मुझे उमर भर के लिये चाहिए मुझे आशा है कि कही ना कही ये कविता अपको अच्छी लगेगी । ऐसा किसी कि जीवन मे स एक बार तो होता ही है । प्यार दे इसे ❤