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सखी अति ही तो अंत का आरंभ बन जाती है होती नहीं लज्

सखी अति ही तो अंत का आरंभ बन जाती है
होती नहीं लज्जित बुद्धि अहंकार से दब जाती है














कुलश्रेष्ठों के भी कुल की साख कलुषित हो जाती है 
अजेय योद्धाओं के सामर्थ्य की धाक दूषित हो जाती है 
चौपड़ खेलने वाले कब मर्यादा लांघ जाएं कौन पहचाने
जीत के लोभ में किसको दांव लगा मार जाएं कौन जाने
कीचक का वध करने वाले भीमबली भला मौन थे क्यूं
भीष्म द्रोण अर्जुन का किस पक्षाघात से हुआ ग्रसित लहू
तर्कसंगत सोचवाला बुद्धि चातुर्ययुक्त एक पति ही है बहुत
द्रौपदी ने भयंकर दुर्गति पाई पांच श्रेष्ठ पतियों के ही सम्मुख 
बबली भाटी बैसला

©Babli BhatiBaisla
  अति

अति #कविता

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