***!!* फूलों को भी नहीं पता उसे जाना कहां है *!!*** ////////////////////\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\ फूलों को भी नहीं पता उसे जाना कहां है, स्वर्ग भी यहां और नर्क भी यहां है। मंदिर जाना है या शमशान, मस्जिद जाना है या कब्रिस्तान। " या " गले का माला बन कर दरिंदों का, सहना है फूलों को अपमान। वीर शहीदों के लाशों पर बिछकर, होगा फूलों को अभिमान। फूलों को भी नहीं पता उसे जाना कहां है, उमंग भी यहां और बसंत भी यहां है। सूखकर पौधों में पंखुड़ियों को, हवाओं में शैर करना है। " या " फूलों को पांव तले कुचल कर, चरणों का धूल बन जाना है। निरंतर शादी के मंडप में सज कर, रंग बिरंगे फूलों को होगा अहंकार। फूलों को भी नहीं पता उसे जाना कहां है, खौफनाक मंजर भी,तूफानी बवंडर भी यहां है। *********************************** प्रमोद मालाकार की कलम से ©pramod malakar #फूलों को भी नहीं पता उसे जाना कहां है!!