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आजादी की ही खातिर तो,सीने पर गोली खाई थी । याद करो

आजादी की ही खातिर तो,सीने पर गोली खाई थी ।
याद करो अब उस पल को भी , गोरो ने सुई चुभाई थी ।
आजादी की ही खातिर तो..

बिलख-बिलख कर माँएं रोई , जब कहीं नही सुनवाई थी ।
पीट-पीट कर सीना हमने , तब दिल की आग बुझाई थी ।।
उन बेदर्दो के जख्मों की, तो कहीं नहीं भरपाई थी ...
आजादी की ही खातिर तो ....

बहनें विधवा हो बैठी थी , सिंदूर माँग का बिखरा था ।
टूटी चूड़ी कंगन की तो , गूँजों से यह दिल दहला था ।।
उन यतीम बच्चों की चीखें , कर देती दिल में खाई थी ...
आजादी की ही खातिर तो ....

भाषण में वीरों की गाथा , बतलाये हिन्दुस्तानी को ।
जो भूल गये खुद आज यहाँ , वीरो की उस कुर्बानी को ।।
आओ याद इन्हें दिलवाये , जो कसमें इसने खाई थी ।
आजादी की ही खातिर तो ....

मानवता में क्रोध भरोगे , क्या ऐसी शपथ दिलाई थी ।
भेदभाव सब में भर दोगे , या ऐसी शपथ दिलाई थी ।।
मुँह फाड़ आज चिल्लाते हो , हमने ही खुशियाँ लाई थी ...
आजादी की ही खातिर तो ...

आजादी की ही खातिर तो , सीने पर गोली खाई थी ।
याद करो अब उस पल को भी, गोरो ने सुई चुभाई थी ।।

१५/०८ २०२३   -  महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR आजादी की ही खातिर तो,सीने पर गोली खाई थी ।
याद करो अब उस पल को भी , गोरो ने सुई चुभाई थी ।
आजादी की ही खातिर तो..

बिलख-बिलख कर माँएं रोई , जब कहीं नही सुनवाई थी ।
पीट-पीट कर सीना हमने , तब दिल की आग बुझाई थी ।।
उन बेदर्दो के जख्मों की, तो कहीं नहीं भरपाई थी ...
आजादी की ही खातिर तो ....
आजादी की ही खातिर तो,सीने पर गोली खाई थी ।
याद करो अब उस पल को भी , गोरो ने सुई चुभाई थी ।
आजादी की ही खातिर तो..

बिलख-बिलख कर माँएं रोई , जब कहीं नही सुनवाई थी ।
पीट-पीट कर सीना हमने , तब दिल की आग बुझाई थी ।।
उन बेदर्दो के जख्मों की, तो कहीं नहीं भरपाई थी ...
आजादी की ही खातिर तो ....

बहनें विधवा हो बैठी थी , सिंदूर माँग का बिखरा था ।
टूटी चूड़ी कंगन की तो , गूँजों से यह दिल दहला था ।।
उन यतीम बच्चों की चीखें , कर देती दिल में खाई थी ...
आजादी की ही खातिर तो ....

भाषण में वीरों की गाथा , बतलाये हिन्दुस्तानी को ।
जो भूल गये खुद आज यहाँ , वीरो की उस कुर्बानी को ।।
आओ याद इन्हें दिलवाये , जो कसमें इसने खाई थी ।
आजादी की ही खातिर तो ....

मानवता में क्रोध भरोगे , क्या ऐसी शपथ दिलाई थी ।
भेदभाव सब में भर दोगे , या ऐसी शपथ दिलाई थी ।।
मुँह फाड़ आज चिल्लाते हो , हमने ही खुशियाँ लाई थी ...
आजादी की ही खातिर तो ...

आजादी की ही खातिर तो , सीने पर गोली खाई थी ।
याद करो अब उस पल को भी, गोरो ने सुई चुभाई थी ।।

१५/०८ २०२३   -  महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR आजादी की ही खातिर तो,सीने पर गोली खाई थी ।
याद करो अब उस पल को भी , गोरो ने सुई चुभाई थी ।
आजादी की ही खातिर तो..

बिलख-बिलख कर माँएं रोई , जब कहीं नही सुनवाई थी ।
पीट-पीट कर सीना हमने , तब दिल की आग बुझाई थी ।।
उन बेदर्दो के जख्मों की, तो कहीं नहीं भरपाई थी ...
आजादी की ही खातिर तो ....

आजादी की ही खातिर तो,सीने पर गोली खाई थी । याद करो अब उस पल को भी , गोरो ने सुई चुभाई थी । आजादी की ही खातिर तो.. बिलख-बिलख कर माँएं रोई , जब कहीं नही सुनवाई थी । पीट-पीट कर सीना हमने , तब दिल की आग बुझाई थी ।। उन बेदर्दो के जख्मों की, तो कहीं नहीं भरपाई थी ... आजादी की ही खातिर तो .... #कविता