आजादी की ही खातिर तो,सीने पर गोली खाई थी ।
याद करो अब उस पल को भी , गोरो ने सुई चुभाई थी ।
आजादी की ही खातिर तो..
बिलख-बिलख कर माँएं रोई , जब कहीं नही सुनवाई थी ।
पीट-पीट कर सीना हमने , तब दिल की आग बुझाई थी ।।
उन बेदर्दो के जख्मों की, तो कहीं नहीं भरपाई थी ...
आजादी की ही खातिर तो .... #कविता