अगर गाँधी जी आज ज़िंदा होते तो मन गांधी न हो पाया कब से खादी पहन रहा हूं, मन गांधी न हो पाया अपनाई स्वदेशी फिर भी, मेरा मन न भर पाया माना देसी गुणवान बहुत है, लेकिन चमक नहीं बैसीं इसलिए मन को भाता है, बापू माल विदेशी ठंडी में गर्मी देती है, गर्मी में रहती ठंडी बारिश गर भीग जाए, फिर नहीं सूखती जल्दी कैसे मैं देसी अपनाऊं, कुमकुम हो या हल्दी रामदेव बाबा ने, बहुत सा माल बनाया देसी योग कराया दुनियाभर को, जींस बनाई फॉरेन जैंसी कब मेरा मन गांधी होगा, मन भाएगी स्वदेशी कब होगा सीधा-साधा जीवन, घटेगी चमक विदेशी सुरेश कुमार चतुर्वेदी ©Suresh Kumar Chaturvedi #gandhi_ji