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विदाई हमारी बेटियों सी नहीं होती न डोली सजाई जाती

विदाई हमारी बेटियों सी नहीं होती न डोली सजाई जाती है।
कच्ची उम्र पर ही हमें जिम्मेदारी की चाबी थमाई जाती है।
यहां खरीददारी होती है बोली लगाई जाती है।
हमें भी पैसे कमा पाने की जंग लड़ाई जाती है।
विदाई हमारी बेटियों सी नहीं होती न डोली सजाई जाती है............

हमारा सम्मान भी कमाये हुए पैसे का मोहताज हो जाता है।
बीबी कमाये पति के सिर पर निकम्मे का ताज हो जाता है।
घरवालों के तानों से मन-मस्तिष्क की धज्जियां उड़ाई जाती है।
घर से बाहर कर दिया जाता है या जग में हंसी उड़ाई जाती है।
विदाई हमारी बेटियों सी नहीं होती न डोली सजाई जाती है............

कई बार आखिरी दर्शन नहीं हो पाते घरवालों के।
क्यूंकि देश-विदेश में रहना पड़ता है हमें सालों से।
लौट न आ पाने पर हमें खरी खोटी सुनाई जाती है।
दिल को पत्थर कह के कितनी बातें बनाईं जाती हैं।
विदाई हमारी बेटियों सी नहीं होती न डोली सजाई जाती है............

जीवन भर दौड़ते हैं हम खुशियां जिनको देने को।
एक पल भी नहीं मिलता उनको प्यार जताने को।
बूढ़े होने पर सठियाने की खिल्ली उड़ाई जाती है।
न कोई दिवस नाम का न ही खुशी मनाई जाती है।
विदाई हमारी बेटियों सी नहीं होती न डोली सजाई जाती है...........
                                                    -कृष्णामरेश Reetesh Sinsinwar
विदाई हमारी बेटियों सी नहीं होती न डोली सजाई जाती है।
कच्ची उम्र पर ही हमें जिम्मेदारी की चाबी थमाई जाती है।
यहां खरीददारी होती है बोली लगाई जाती है।
हमें भी पैसे कमा पाने की जंग लड़ाई जाती है।
विदाई हमारी बेटियों सी नहीं होती न डोली सजाई जाती है............

हमारा सम्मान भी कमाये हुए पैसे का मोहताज हो जाता है।
बीबी कमाये पति के सिर पर निकम्मे का ताज हो जाता है।
घरवालों के तानों से मन-मस्तिष्क की धज्जियां उड़ाई जाती है।
घर से बाहर कर दिया जाता है या जग में हंसी उड़ाई जाती है।
विदाई हमारी बेटियों सी नहीं होती न डोली सजाई जाती है............

कई बार आखिरी दर्शन नहीं हो पाते घरवालों के।
क्यूंकि देश-विदेश में रहना पड़ता है हमें सालों से।
लौट न आ पाने पर हमें खरी खोटी सुनाई जाती है।
दिल को पत्थर कह के कितनी बातें बनाईं जाती हैं।
विदाई हमारी बेटियों सी नहीं होती न डोली सजाई जाती है............

जीवन भर दौड़ते हैं हम खुशियां जिनको देने को।
एक पल भी नहीं मिलता उनको प्यार जताने को।
बूढ़े होने पर सठियाने की खिल्ली उड़ाई जाती है।
न कोई दिवस नाम का न ही खुशी मनाई जाती है।
विदाई हमारी बेटियों सी नहीं होती न डोली सजाई जाती है...........
                                                    -कृष्णामरेश Reetesh Sinsinwar