मिलें आप जो चाय पे , कर ली फिर दो बात । इसी बहाने आप से , हो सीधी मुलाकात ।।१ बढ़ जाये फिर चाय का , स्वाद और भी खूब । आप रहे सम्मुख सुनो , औ हम जाये डूब ।।२ हर चुस्की पे चाय की , किया प्रेम की बात । बिन मिश्री मीठी लगी , अपनी वह मुलाकात ।।३ जूठी करके दे रही , नित्य सुबह की चाय । कहती दिन मीठा रहे , उत्तम यही उपाय ।।४ निर्मंल मन को देखिए , तन के क्या है हाथ । प्रेम -प्रीत की डोर तो , बाँधे जीवन साथ ।।५ पीते थे हम भी कभी , चाय आपके साथ । छुड़ा लिए है आपने , आज हाथ से हाथ ।।६ लौट नहीं पाया कभी , देखो वह रविवार । अदरक वाली चाय में , मिला आपका प्यार ।।७ चंदा भी छुपता रहे , देख तुम्हारा भाल । रूप तुम्हारा देखकर , मन में उठे सवाल ।।८ कहीं और देखा नही , ऐसा सुंदर रूप । जन जन को वह मोह ले , रंक दिखे या भूप ।।९ देख पिया खिलने लगा , गोरी का हर अंग । अधरो से मिलने लगा , आज हिना का रंग ।।१० १५/०९/२०२२ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मिलें आप जो चाय पे , कर ली फिर दो बात । इसी बहाने आप से , हो सीधी मुलाकात ।।१ बढ़ जाये फिर चाय का , स्वाद और भी खूब । आप रहे सम्मुख सुनो , औ हम जाये डूब ।।२ हर चुस्की पे चाय की , किया प्रेम की बात । बिन मिश्री मीठी लगी , अपनी वह मुलाकात ।।३