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ये मकान भले आलिशान लगता है तिरे बगैर तो घर शमसान

ये मकान भले आलिशान लगता है 
तिरे बगैर तो घर शमसान लगता है 

ये फ़िजा भी आनी जानी ही तो है 
अबके मौसम भी बेईमान लगता है 

दफ़न हैं माँ बाप के अरमान जिसमें 
आज तक मनहूस वो मकान लगता है 

कुछ गैरों की ख़ुशी से जल गया दिल 
कुछ अपने गमों से परेशान लगता है 

सीना ठोंक कर कहते क्यूँ नहीं तुम 
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान लगता है

©Adv. Rakesh Kumar Soni (अज्ञात) #Home
ये मकान भले आलिशान लगता है 
तिरे बगैर तो घर शमसान लगता है 

ये फ़िजा भी आनी जानी ही तो है 
अबके मौसम भी बेईमान लगता है 

दफ़न हैं माँ बाप के अरमान जिसमें 
आज तक मनहूस वो मकान लगता है 

कुछ गैरों की ख़ुशी से जल गया दिल 
कुछ अपने गमों से परेशान लगता है 

सीना ठोंक कर कहते क्यूँ नहीं तुम 
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान लगता है

©Adv. Rakesh Kumar Soni (अज्ञात) #Home