ख़ुद की सोच ख़ुद की सोच की कैद में, बंदी थी वो निकलना नहीं चाहती थी वहाँ से, सबसे विमुख हो गई थी वो ख़ुद का भी, होश नहीं था उसे अपने दिल के जज़्बात भी, वो कह ना पाई कभी किसी से उसे इस दलदल से निकालने, फ़िर आया कोई जिसने उसके जीवन में आकर, पीड़ा उसकी हर ली सभी जीना वो गई थी भूल, उसके उसे जीना सिखाया हर हाल में कैसे है मुस्कुराना, उसको बताया अपनी ख़ुद की परेशानियों के बावजूद, उसने बढ़ाया उसकी ओर अपना हाथ किया वादा उससे, जीवन भर वो देगा उसका साथ ख़ुद की सोच ख़ुद की सोच की कैद में, बंदी थी वो निकलना नहीं चाहती थी वहाँ से, सबसे विमुख हो गई थी वो ख़ुद का भी,