*** ग़ज़ल *** *** मौजूदगी *** " वेशक ना तु मिल मुझे , तेरी ख्वाहिशें तमाम रखेंगे , अब कोई बात हो अब मुख्तलिफ बातों में , अब सारा शहर आम रखेंगे , तेरी मैजुदगी का कुछ तो पता चले , हम तेरी ख्वाहिशें सरेयाम रखेंगे , मैं तुमसे किनारा कैसे कर लूं , मैं किसी शक्श में तेरी मौजूदगी तलाश तो कर लूं , वेशक ना तु मिल मुझे , तेरी ख्वाहिशें तमाम रखेंगे , यूं मिलना तेरा फिर मिलना कब होगा , तेरी ख्वाहिशें में सारा शहर आम रखेंगे , अब सलीका जो भी हो , अब एक सलीके तुझे चाहना , तेरी गैरमौजूदगी का कुछ पता तो चले , आइने तस्लीम करने बैठ जाते हैं , हर शख्स में तेरी मौजूदगी तलाश कर जाते हैं , जो मिलो तुम कहीं मुहब्बत सरेआम करना है , तसव्वुर के ख़्यालो को वो आईना तो मिले , जिसमें तुझे देख सकू वो कहीं शक्श तो मिले . --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram *** ग़ज़ल *** *** मौजूदगी *** " वेशक ना तु मिल मुझे , तेरी ख्वाहिशें तमाम रखेंगे , अब कोई बात हो अब मुख्तलिफ बातों में , अब सारा शहर आम रखेंगे , तेरी मैजुदगी का कुछ तो पता चले ,