क्या सोच रहा होगा काश परिन्दों जैसे पर होते या खुल

क्या सोच रहा होगा
काश परिन्दों जैसे पर होते
या खुले आसमान जैसे ख्वाब
ना कोई बन्दिश ना होते अरमान
बस एक सुकून भरा लम्हा होता
  कैद न होता दिल मे इतना साजो सामान।।

©Rajeev Bhardwaj
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