यूं करके हमसे बात छिपाई जाती है आँख मिला कर आँख चुराई जाती है।। सियासत का मोल अब रहा क्या है। वोट खरीद के साख बचाई जाती है।। शेर चुराके एक गज़ल बनाई जाती है। इस धोके से फिर धाख जमाई जाती है।। चुप होकर भी बाज़ी जीती जाती है। यूं रिशतों की साख बचााई जाती है।। ख्वाहिशों कि मय्यत बनाई जाती है । यूं सपनों की खाक उडाई जाती है।। हाकीमों के सब खून माफ हो जाते हैं मुफलिस की रोटी पे जाँच बिठाई जाती है।। यूं करके हमसे बात छिपाई जाती है आँख मिला कर आँख चुराई जाती है।। सियासत का मोल अब रहा क्या है। वोट खरीद के साख बचाई जाती है।। शेर चुराके एक गज़ल बनाई जाती है। इस धोके से फिर धाख जमाई जाती है।।