वीणादण्ड़ छन्द 121 112 122 222 मिले फिर नया सवेरा जागे जो । न मेहनत से कभी भी भागे जो ।। तभी उदय भाग्य का ऊँचा होगा । न सोच अब क्या यहाँ नीचा होगा ।। १३/०९/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR वीणादण्ड़ छन्द 121 112 122 222 मिले फिर नया सवेरा जागे जो ।