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ज़ख्म देकर के तुम आह भरते हो क्यों मुस्कराने की फि

ज़ख्म देकर के तुम आह भरते हो क्यों
मुस्कराने की फिर बात करते हो क्यों 
छोड़ दो अब तो मुझको मेरे हाल पर 
बेवजह व्यर्थ की चाह रखते हो क्यों
ज़ख्म देकर के......
भावनाओं को समझो न खेलवाड़ तुम
ज़िंदगी अपनी तुम राख करते हो क्यों
देखता वो है सब कुछ पर कहता नहीं
बनके बहुरूपिया इतना सजते हो क्यों
ज़ख्म देकर के......
तुमने उसको ठगा या स्वयं को ठगा
करके देखो परख इतना हंसते हो क्यों
ये दोधारी है खंजर क्यों समझता नहीं
"सूर्य" नासूरों के साथ चलते हो क्यों
ज़ख्म देकर के......

©R K Mishra " सूर्य "
  #ज़ख्म  Rama Goswami अभिलाष द्विवेदी (अकेला ) एक अनपढ़ शायर भारत सोनी _इलेक्ट्रिशियन Pragati Tiwari Ƈђɇҭnᴀ Ðuвєɏ