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कौन लगाये इनमें फूल ममता भरी उंगलियां अब तो चली गई

कौन लगाये इनमें फूल
ममता भरी उंगलियां अब तो
चली गई हैं कोसों दूर
तेल भरी अंजुरी में उसके
न जाने कैसा जादू था
 गायब न हो उसकी थपकी से
न दर्द ऐसा भारी था
बिखरी हुई उन अलकों में
 उलझनों ने डेरा डाला था
इंतजार में खुले थे गेसु
हवाओं ने भी उन्हें छेड़ा था
बोझल आंखें तकलीफों से 
नींद से किया किनारा था।

©alka mishra
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