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सपने लिखूं या सच लिख दूँ।। सपने लिखूं या सच लिख द

सपने लिखूं या सच लिख दूँ।।

सपने लिखूं या सच लिख दूँ,
बोलो किसका मैं पक्ष लिख दूँ।
इक्षा लिखूं या लिखूं समीक्षा,,
प्रश्न उठा क्या यक्ष लिख दूँ।

मैं विरह वेदना क्लेश लिखूं,
मैं पाप पुण्य या द्वेष लिखूं।
भूत लिखूं या लिखूं भविष्य,
आरम्भ अंत या शेष लिखूं।
छद्मवर्णीय जग लिख दूँ,
या निजमन पशु-भेष लिखूं।
संचित सांस्कृत्य लेख लिखूं,
या इसका बचा अवशेष लिखूं।
राजनीत की दिशा लिखूं,
या दशा दिनकर-समकक्ष लिख दूँ।
सपने लिखूं या सच लिख दूँ,
बोलो किसका मैं पक्ष लिख दूँ।

प्रसव वेदना नार की पीड़ा,
मृत्यु-क्षण या बाल की क्रीड़ा।
दुग्धरहित छाती ममता की,
कष्टनिवारन और समता की।
औषधिरहित विज्ञान लिखूं,
या थोथा कोई ज्ञान लिखूं।
जीवन को कोई तंत्र लिखूं,
या मृत्यु को गणना यंत्र लिखूं।
कालिख पोत जो कोठर बैठा,
तमद्वार खोल प्रत्यक्ष लिख दूँ।
सपने लिखूं या सच लिख दूँ,
बोलो किसका मैं पक्ष लिख दूँ।

श्वेत वस्त्र सब धार रहे,
मन की कालिख हैं झाड़ रहे।
मैं मति लिखूं या गति लिखूं,
या दैवरूपा को सती लिखूं।
रवि संग बन राम मैं जगता हूँ,
बन मारीच निज को फिर ठगता हूँ।
अब युक्ति रही उपयुक्त नहीं,
है कलम भी दाग से मुक्त नहीं।
भाव कहाँ निष्पक्ष हुए,
कैसे हो संजय सा दक्ष लिख दूँ।
सपने लिखूं या सच लिख दूँ,
बोलो किसका मैं पक्ष लिख दूँ।

©रजनीश "स्वछंद" सपने लिखूं या सच लिख दूँ।।

सपने लिखूं या सच लिख दूँ,
बोलो किसका मैं पक्ष लिख दूँ।
इक्षा लिखूं या लिखूं समीक्षा,,
प्रश्न उठा क्या यक्ष लिख दूँ।

मैं विरह वेदना क्लेश लिखूं,
सपने लिखूं या सच लिख दूँ।।

सपने लिखूं या सच लिख दूँ,
बोलो किसका मैं पक्ष लिख दूँ।
इक्षा लिखूं या लिखूं समीक्षा,,
प्रश्न उठा क्या यक्ष लिख दूँ।

मैं विरह वेदना क्लेश लिखूं,
मैं पाप पुण्य या द्वेष लिखूं।
भूत लिखूं या लिखूं भविष्य,
आरम्भ अंत या शेष लिखूं।
छद्मवर्णीय जग लिख दूँ,
या निजमन पशु-भेष लिखूं।
संचित सांस्कृत्य लेख लिखूं,
या इसका बचा अवशेष लिखूं।
राजनीत की दिशा लिखूं,
या दशा दिनकर-समकक्ष लिख दूँ।
सपने लिखूं या सच लिख दूँ,
बोलो किसका मैं पक्ष लिख दूँ।

प्रसव वेदना नार की पीड़ा,
मृत्यु-क्षण या बाल की क्रीड़ा।
दुग्धरहित छाती ममता की,
कष्टनिवारन और समता की।
औषधिरहित विज्ञान लिखूं,
या थोथा कोई ज्ञान लिखूं।
जीवन को कोई तंत्र लिखूं,
या मृत्यु को गणना यंत्र लिखूं।
कालिख पोत जो कोठर बैठा,
तमद्वार खोल प्रत्यक्ष लिख दूँ।
सपने लिखूं या सच लिख दूँ,
बोलो किसका मैं पक्ष लिख दूँ।

श्वेत वस्त्र सब धार रहे,
मन की कालिख हैं झाड़ रहे।
मैं मति लिखूं या गति लिखूं,
या दैवरूपा को सती लिखूं।
रवि संग बन राम मैं जगता हूँ,
बन मारीच निज को फिर ठगता हूँ।
अब युक्ति रही उपयुक्त नहीं,
है कलम भी दाग से मुक्त नहीं।
भाव कहाँ निष्पक्ष हुए,
कैसे हो संजय सा दक्ष लिख दूँ।
सपने लिखूं या सच लिख दूँ,
बोलो किसका मैं पक्ष लिख दूँ।

©रजनीश "स्वछंद" सपने लिखूं या सच लिख दूँ।।

सपने लिखूं या सच लिख दूँ,
बोलो किसका मैं पक्ष लिख दूँ।
इक्षा लिखूं या लिखूं समीक्षा,,
प्रश्न उठा क्या यक्ष लिख दूँ।

मैं विरह वेदना क्लेश लिखूं,

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