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हे मेरे अराध्य कोटिश प्रणाम तुझे. आज मै आया हूँ

हे मेरे अराध्य
कोटिश प्रणाम  तुझे.
आज मै आया हूँ  प्रांगढ़ मे तेरे
निवेध्य चढ़ाना  है लेकिन हाथ मेरे  रीते है
मै जानता हूँ तेरी कृपा है मुझपरऔर तू है अपरम्पार.
मेरे दुख सुख की गाथा तू सुन चुका संकड़ो बार
भय के स्वप्न धुरंधर  है और आनद के कल्प है हज़ार 
लेकिन फिर भी कम्पति है छाया मेरी विलगती नहीं  तन से
सोचा था दो फूल चढ़ाऊंगा तेरे  चरणों मे लेकिन  हाथ मेरे रीते  है 
पर वे फूल मै लाऊ कहा से.... क्योंकि अभी वे खिले ही नहीं... उनकी कलिया शैशव रूप मे है
इसलिए मै  इन्हे  समर्पित करता हूँ वही से
जिस डाली पऱ वे खडे है  जो है अक्षत  अनछुए अस्पष्ट से......
क्या मेरे इस  अर्पण और समर्पण क़ो स्वीकार कर पाओगे हे मेरे तथागत?

©Parasram Arora अर्पण  और समर्पण
हे मेरे अराध्य
कोटिश प्रणाम  तुझे.
आज मै आया हूँ  प्रांगढ़ मे तेरे
निवेध्य चढ़ाना  है लेकिन हाथ मेरे  रीते है
मै जानता हूँ तेरी कृपा है मुझपरऔर तू है अपरम्पार.
मेरे दुख सुख की गाथा तू सुन चुका संकड़ो बार
भय के स्वप्न धुरंधर  है और आनद के कल्प है हज़ार 
लेकिन फिर भी कम्पति है छाया मेरी विलगती नहीं  तन से
सोचा था दो फूल चढ़ाऊंगा तेरे  चरणों मे लेकिन  हाथ मेरे रीते  है 
पर वे फूल मै लाऊ कहा से.... क्योंकि अभी वे खिले ही नहीं... उनकी कलिया शैशव रूप मे है
इसलिए मै  इन्हे  समर्पित करता हूँ वही से
जिस डाली पऱ वे खडे है  जो है अक्षत  अनछुए अस्पष्ट से......
क्या मेरे इस  अर्पण और समर्पण क़ो स्वीकार कर पाओगे हे मेरे तथागत?

©Parasram Arora अर्पण  और समर्पण

अर्पण और समर्पण #कविता