विधा दाम छन्द 121 121 121 121 सुनो रघुनाथ खडा अब दास । हरो सब ताप लगी है आस ।। न ठूँठ बने अब मानव गात । करो न भला तुम ही अब तात ।। जपूँ हरि नाम कहे हनुमान । कटे सब फंद करे जब ध्यान ।। सुनो तन मानव है हरि धाम । भजो फिर लाल सदा प्रभु राम ।। वही रघुनंदन है घनश्याम । रहा जग सुंदर है यह धाम ।। लगाकर चंदन मैं नित भाल । करूँ फिर वंदन लेकर थाल ।। २७/१२/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR विधा दाम छन्द 121 121 121 121 सुनो रघुनाथ खडा अब दास । हरो सब ताप लगी है आस ।।