गीत :- थर-थर कापे होंठ सभी के , कट-कट बोले दाँत । अन्न बिना सूने है दिखते , घर में अब तो जाँत । थर-थर कापे होंठ सभी के .... कैसे दे नववर्ष बधाई , जाकर उनको आज । काज सभी के बन्द पड़े है , कैसे छेड़े साज ।। रोटी तो अब मिलती मुश्किल , कब तक खाए भात । थर-थर कापे होंठ सभी के .... शीत लहर से काँप रहे हैं , जीव-जन्तु इंसान । दसों दिशाओं धुन्ध पड़ी है , छुपे सूर्य भगवान ।। खाली पेट मरोड़ उठी है , सुकुड़ी सबकी आँत । थर-थर कापे होंठ सभी के .... जो मेरा अब तक हुआ नही , कैसे हो स्वीकार । बस कहकर तुमने थोप दिया , यह सबका त्यौहार ।। लेकिन इसमें दिखी न हमको , खुशियों की सौगात । थर-थर कापे होंठ सभी के ... हम तो अपनी पीर छुपाए , बैठे थे सरकार । ऊपर से नववर्ष तुम्हारा , बन बैठा त्यौहार ।। किसको जाकर आज दिखाए , किसने मारी लात । थर-थर कापे होंठ सभी के .... थर-थर कापे होंठ सभी के , कट-कट बोले दाँत । अन्न बिना सूने है दिखते , घर में अब तो जाँत । ०१/०१/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :- थर-थर कापे होंठ सभी के , कट-कट बोले दाँत । अन्न बिना सूने है दिखते , घर में अब तो जाँत । थर-थर कापे होंठ सभी के ....